सिकुलर के नाम पर तीनो दलो ने पसमांदा मुसलमानो को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया-वसीम राईन

सिकुलर के नाम पर तीनो दलो ने पसमांदा मुसलमानो को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया-वसीम राईन

धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब या तो कांग्रेस बसपा व सपा को मालूम नही है या फिर इसके मतलब से मतलब रखना नही चाहते। धर्मनिरपेक्ष दल वह है जो बिना भेदभाव सबको समान रूप से बिना धार्मिक आधार के देखे या फिर राजनीतिक आर्थिक सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं से धर्म को अलग रखे। उदाहरण के तौर पर देश की 85 फीसदी पसमांदा यानी दलित पिछड़े मुस्लिम समाज को उसके बुनियादी अधिकारों से दशको तक वंचित रखना वह भी बिना खता कसूर बताए। जबकि इसी समाज ने एकजुट होकर तीनो दलों की सरकार बनवाने में जरा भी कोताही नही की। बदले में उसे मिला लम्बा वनवास जो अभी तक पूरा नही हो सका है लेकिन तीनो दल एक बात जरूर याद रखें कि उपेक्षा एक दिन किसी की मजबूती भी बन जाती है फिर पसमांदा तो वर्तमान में सबसे बड़ी आबादी है आज वह हिस्सेदारी की बात कर रही तो इसमें गलत ही क्या है। बरसों इस्तेमाल होने के बाद आखिर दलित मुस्लिम समाज आज जागरूक होने की राह पर तो है।
धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ कर समाज को बांटने व बिरादरियों को वोटबैंक की तरह इस्तेमाल करने वाले दलों की कलई अब खुल गई है। राजनीतिक ही नही सामाजिक बदलाव का ही फेर है कि आज इन दलों को जमीन तलाशने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। भेदभाव और बंटवारे की राजनीति ज्यादा वक्त नही चलती।

अब जरा कांग्रेस समाजवादी पार्टी और बसपा की हरकतों पर नजर डालते हुए इनकी समाज को बांटने वाली राजनीति पर ध्यान दिया जाए तो इन्हें किसी भी सूरत में धर्मनिरपेक्षता का हिमायती नही कहा जा सकता। जैसे कि देश की 85 फीसदी पिछड़ी दलित पसमांदा मुस्लिम आबादी को वोटबैंक की तरह इस्तेमाल कर इधर उधर भटकने के लिए छोड़ दिया गया। इस समाज के हक़ व जरूरतो को सिरे से नजरअंदाज कर दिया गया। दशको वोट हासिल कर सत्ता में बारी बारी से तीनों दल आते रहे पर इस समाज की उन्नति की बात कभी नही की गई। खुद को धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाले इन दलों पर से पर्दा गिर चुका है। तीनो ही दलों ने सुनियोजित ढंग से पसमांदा मुस्लिम समाज को ठगा व छला है, जैसे कि कांग्रेस ने आर्टिकल 341 पर धार्मिक पाबंदी लगाकर पसमांदा मुस्लिम समाज को बुनियादी अधिकारों से महरूम कर दिया। देश की 85 फीसदी आबादी न सदन में हाजिरी दर्ज करा सकी और न ही इस समाज से चुनकर लोग भारतीय सेवाओं में ही जा सके। कांग्रेस ने सिर्फ वोटबैंक की तरह पसमांदा समाज का इस्तेमाल किया। यही हाल समाजवादी पार्टी का रहा, न संगठन में जगह दी और न ही वादा करके सत्ता में शामिल किया बल्कि इस समाज का मत लेकर सत्ता का सुख भोगते रहे। समाजवाद का नारा देकर भाषण में पिछडो के हित की बात की गई लेकिन जब करने का मौका मिला तो दलित मुस्लिम समाज को बिसरा दिया गया। बसपा भी किसी से पीछे नही रही, दलितों की राजनीति कर फर्श से अर्श पर गई बसपा के नेताओं को दलित मुस्लिम समाज नही नजर आया बस वोट लेकर सत्ता में आते रहे। धर्मनिरपेक्ष होने का लबादा ओढ़े कांग्रेस सपा व बसपा की असलियत आज सबके सामने है। पसमांदा समाज भी आज इनसे सतर्क हो गया है। इसीलिए वह अब हिस्सेदारी की बात कर रहा और इसके बिना कोई बात भी नहीं होगी। रही बात भाजपा की तो इस दल के बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी जबकि बसपा सपा व कांग्रेस की दगाबाजी व बहरूपिया चेहरा आज जगजाहिर है इनकी स्वार्थ भरी राजनीति के बारे में किसी को बताने की जरूरत नही है।

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