लखनऊ। समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की संशोधित सूची में एक बार फिर पसमांदा मुस्लिम चेहरों को जगह नही दी गई। जबकि अखिलेश यादव खुद को पिछड़ों का हितैषी कहते हैं। स्पष्ट है कि सत्ता में आने की आस दिल मे पाले सपा नेतृत्व अहम में डूब गया है। लगता है कि सपा नेतृत्व पसमांदा समाज की बेकद्री का खामियाजा फिर भुगतने का मन बना चुका है।
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने अपने एक बयान में कही। उन्होंने कहा कि समाजवाद की बात करने वाली पार्टी आज अपने लक्ष्य से भटक गई है। जिस मकसद से इस पार्टी का जन्म हुआ उस पार्टी के नेता मकसद ही भुला बैठे। जिसका प्रमाण सबके सामने है। समाजवाद का मतलब हर वर्ग समुदाय को साथ लेकर चलना है लेकिन सपा के वर्तमान नेतृत्व ने इसके अपने ही मतलब निकाल रखे हैं और वह है समाज को बांटो और राज करते रहो। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि सपा नेतृत्व ने कार्यकारिणी का गठन किया जिसमें पसमांदा समाज से मात्र एक चेहरे को जगह दी गई, पसमांदा समाज मे अंदर ही अंदर सपा के इस रुख को लेकर नाराजगी फैल गई। हाल ही में संशोधित सूची जारी की गई, उम्मीद थी कि अखिलेश यादव पसमांदा समाज को और तरजीह देंगे लेकिन ठीक उल्टा हुआ। एक बार फिर पसमांदा मुसलमान को हाशिये पर कर दिया गया। नेतृत्व के इस रुख से साफ हो रहा कि वह पसमांदा समाज को संगठन में शामिल नही करना चाहता। इसके नतीजे दूर तक असर डालेंगे। लगता है कि सपा वक़्त की करवट से कोई सबक नही लेना चाहती।वसीम राईन ने कहा कि 2014, 2017, 2019 में हार का मुंह देख चुकी समाजवादी पार्टी का दिल अभी भरा नही है और उसे 2024 में भी शिकस्त की चाह है। यही रुख बना रहा तो पसमांदा समाज को नजरअंदाज करने का सिला 2024 में भी मिल जाएगा।